गत्ता उद्योगों में कच्चे माल का संकट

बद्दी (सोलन)। यूपी और उत्तराखंड के पेपर मिलों के हड़ताल पर जाने से प्रदेश के गत्ता उद्योगों में कच्चे माल का संकट खड़ा हो गया है। अगर शीघ्र ही गत्ता उद्योगों को कच्चा माल नहीं मिला तो दर्जनों उद्योग का संचालन प्रभावित हो सकता है। गत्ता उद्योग संचालकों का कहना है कि इस बार उत्तराखंड और यूपी के पेपर मिलों को हिमाचल और पंजाब ने समर्थन दिया है। पेपर मिल संचालकों का मकसद पेपर के रेट बढ़ाना है।
हिमाचल प्रदेश के ऊना, बीबीएन, कालाअंब, परवाणू, पांवटा साहिब में करीब डेढ़ सौ से अधिक गत्ता उद्योग हैं। इन उद्योगों में प्रति दिन एक हजार टन पेपर की खपत रहती है। यह मांग यूपी और उत्तराखंड की पेपर उद्योगों पूरी होती है। लेकिन 12 फरवरी से अचानक सभी पेपर उद्योगों ने 20 फरवरी तक बिना कारण हड़ताल कर दी है। इस बार कालाअंब स्थित एक पेपर मिल और पंजाब की पेपर मिलों को शामिल कर दिया है। इससे कच्चा माल आने के सभी रास्ते बंद हो गए हैं।
वर्तमान में कोई भी गत्ता संचालक दो तीन दिन से अधिक कच्चा माल नहीं रखता है। अगर शीघ्र ही पेपर उद्योगों ने हड़ताल समाप्त नहीं की तो प्रदेश के गत्ता उद्योग स्वयं ही बंद हो जाएंगे। गत्ता उद्योग संघ के प्रदेश अध्यक्ष मुकेश जैन ने कहा कि गत्ते के रेट वही वर्षों पुराने हैं लेकिन पेपर उद्योग हर छह माह के बाद पेपर के रेट बढ़ाने के लिए इस तरह का ड्रामा रचते हैं। गत्ता संचालकों को अपने उद्योग चलाने के लिए इन पेपर उद्योगों पर निर्भर रहना पड़ रहा है, जिसका यह फायदा उठा रहे हैं।
इनसेट
पेपर मिलों की मनमानी पर लगाम लगे
बद्दी। गत्ता उद्योग संघ के बीबीएन इकाई के अध्यक्ष निर्मल सिंगला, मुख्य सलाहकार सुरेंद्र जैन, हेमराज चौधरी, विकास सिंगला, अजय चौधरी ने बताया कि केंद्र सरकार ने एलपीजी गैस के दाम भी प्रति सिलेंडर छह सौ रुपये बढ़ा दिए हैं। पहले 19 किलो का सिलेंडर 16 सौ रुपये में मिलता था अब वह 22 सौ रुपये मिल रहा है। इससे एक उद्योग पर छोटे उद्योग पर 30 हजार रुपये क ा अतिरिक्त खर्चा बढ़ गया है। उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की है कि पेपर उद्योग के इस मनमाने रवैये पर लगाम लगाई जाए जिससे गत्ता उद्योग जिंदा रह सके।

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